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कहां गई भारत की वह अनपढ़ पीढ़ी जो हमें बहुत डांटती थी कहती थी नल धीरे खोलो पानी बदला लेता है और अन्न नाली में न जाए नाली के कीड़े बानो सुबह-सुबह जल्दी उठो स्नान करो और सूर्य देव को जल चढ़ाओ तुलसी को जल डालो बरगद पूजा पीपल पूजो आंवला पूजो चिड़िया के लिए छत पर पानी रखा कि नहीं गाय के लिए अलग रोटी निकली कि नहीं अरे कांच टूट गया इसे अलग कूड़े में डालना कही किसी जानवर के मुंह में लग गया तो ये पीढ़ी इतनी पढ़ी लिखी नहीं थी परंतु शास्त्रों की श्रुति परंपरा की शिक्षा थी और किताबें पढ़ कर इस पीढ़ी की आस्था को कुचलते हुए धरती को विनाश की ओर ले जा रहे हैं सुधर जाओ जय श्री राम

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